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Himachal Pradesh Cricket Association Stadium Dharmshala Picht Report In Hindi 2023

आज के इस लेख में हम आपको Himachal Pradesh Cricket Association Stadium Dharmshala Picht Report In Hindi में बताने वाले है। यदि आप भी आज के मैच की पिच रिपोर्ट की सही और सटीक जानकारी प्राप्त करना चाहते है तो इस लेख को अंत तक पढ़े। हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन स्टेडियम, जिसे आमतौर पर एचपीसीए स्टेडियम के रूप में जाना जाता है, भारत के हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में स्थित एक क्रिकेट स्टेडियम है। यह हिमालय की तलहटी में अपनी सुरम्य सेटिंग के लिए जाना जाता है, जिसकी पृष्ठभूमि में धौलाधार पर्वत श्रृंखला है। यह स्टेडियम दुनिया के सबसे ऊंचे क्रिकेट स्टेडियमों में से एक है, जो समुद्र तल से लगभग 1,457 मीटर (4,780 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। स्टेडियम में लगभग 23,000 दर्शकों के बैठने की क्षमता है और यह घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों क्रिकेट मैचों की मेजबानी करता है। यह हिमाचल प्रदेश राज्य क्रिकेट टीम का घरेलू मैदान है और इसने कई इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) मैचों की भी मेजबानी की है। एचपीसीए स्टेडियम की अनूठी विशेषताओं में से एक स्टेडियम की तुलना में अधिक ऊंचाई पर अभ्यास की सुविधा है, जिससे खिलाड़ियों क

Chhand Kise Kahate Hai - छंद की परिभाषा - Chhand Ke Prakar

आज की इस पोस्ट में हमने Chhand Kise Kahate Hai या Chhand Ki Pribhasha क्या होती है के बारे में विस्तार से बताया है। यहाँ पर हमने sortha, rola, sortha chhand ke udaharan भी लिखे है। 

Chhand Kise Kahate Hai
Chhand Kise Kahate Hai 

इस लेख में छंद किसे कहते है ? छंद की परिभाषा क्या होती है। इसके बारे में आप जानेंगे तो लेख को अंत तक पढ़े। 

Chhand Kise Kahate Hai - छंद की परिभाषा - छंद किसे कहते है 

छंद शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्यास से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छंद की परिभाषा होगी 'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'। छंद का सर्वप्रथम उल्लेख 'ऋग्वेद' में मिलता है। जिस प्रकार गद्य का नियामक व्याकरण है, उसी प्रकार पद्य का छंद शास्त्र है।

छंद का अर्थ - Chhand Meaning In Hindi

छन्द संस्कृत वाङ्मय में सामान्यतः लय को बताने के लिये प्रयोग किया गया है। विशिष्ट अर्थों में छन्द कविता या गीत में वर्णों की संख्या और स्थान से सम्बंधित नियमों को कहते हैं जिनसे काव्य में लय और रंजकता आती है। छोटी-बड़ी ध्वनियां, लघु-गुरु उच्चारणों के क्रमों में, मात्रा बताती हैं और जब किसी काव्य रचना में ये एक व्यवस्था के साथ सामंजस्य प्राप्त करती हैं तब उसे एक शास्त्रीय नाम दे दिया जाता है और लघु-गुरु मात्राओं के अनुसार वर्णों की यह व्यवस्था एक विशिष्ट नाम वाला छन्द कहलाने लगती है, जैसे चौपाई, दोहा, आर्या, इन्द्र्वज्रा, गायत्री छन्द इत्यादि। इस प्रकार की व्यवस्था में मात्रा अथवा वर्णॊं की संख्या, विराम, गति, लय तथा तुक आदि के नियमों को भी निर्धारित किया गया है जिनका पालन कवि को करना होता है। इस दूसरे अर्थ में यह अंग्रेजी के मीटर अथवा उर्दू फ़ारसी के रुक़न (अराकान) के समकक्ष है। हिन्दी साहित्य में भी परंपरागत रचनाएँ छन्द के इन नियमों का पालन करते हुए रची जाती थीं, यानि किसी न किसी छन्द में होती थीं। विश्व की अन्य भाषाओँ में भी परंपरागत रूप से कविता के लिये छन्द के नियम होते हैं।

छन्दों की रचना और गुण-अवगुण के अध्ययन को छन्दशास्त्र कहते हैं। चूँकि, आचार्य पिंगल द्वारा रचित 'छन्दःशास्त्र' सबसे प्राचीन उपलब्ध ग्रन्थ है, इस शास्त्र को पिंगलशास्त्र भी कहा जाता है।

छंद के अंग

छंद के कुल सात अंग होते हैं। जो इस प्रकार हैं - 

  • चरण/ पद/ पाद
  • वर्ण और मात्रा
  • संख्या और क्रम
  • गण
  • गति
  • यति/ विराम
  • तुक
1- छंद में चरण/ पद/ पाद

  • छंद के प्रायः 4 भाग होते हैं। इनमें से प्रत्येक को 'चरण' कहते हैं। दूसरे शब्दों में छंद के चतुर्थांश (चतुर्थ भाग) को चरण कहते हैं।
  • कुछ छंदों में चरण तो चार होते हैं लेकिन वे लिखे दो ही पंक्तियों में जाते हैं, जैसे- दोहा, सोरठा आदि। ऐसे छंद की प्रत्येक पंक्ति को 'दल' कहते हैं।
  • हिन्दी में कुछ छंद छः- छः पंक्तियों (दलों) में लिखे जाते हैं, ऐसे छंद दो छंद के योग से बनते हैं, जैसे- कुण्डलिया (दोहा + रोला), छप्पय (रोला + उल्लाला) आदि।
चरण 2 प्रकार के होते हैं

  • समचरण :- दूसरे और चौथे चरण को समचरण कहते हैं।
  • विषमचरण :- पहले और तीसरे चरण को विषमचरण कहा जाता है।
2- छंद में वर्ण और मात्रा

वर्ण/ अक्षर:

  • एक स्वर वाली ध्वनि को वर्ण कहते हैं, चाहे वह स्वर ह्रस्व हो या दीर्घ।
  • जिस ध्वनि में स्वर नहीं हो (जैसे हलन्त शब्द राजन् का 'न्', संयुक्ताक्षर का पहला अक्षर - कृष्ण का 'ष्') उसे वर्ण नहीं माना जाता। वर्ण को ही अक्षर कहते हैं।

वर्ण 2 प्रकार के होते हैं-

  1. ह्रस्व स्वर वाले वर्ण (ह्रस्व वर्ण): अ, इ, उ, ऋ, क, कि, कु, कृ
  2. दीर्घ स्वर वाले वर्ण (दीर्घ वर्ण): आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, का, की, कू, के, कै, को, कौ

मात्रा:

  • किसी वर्ण या ध्वनि के उच्चारण-काल को मात्रा कहते हैं।
  • ह्रस्व वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे एक मात्रा तथा दीर्घ वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे दो मात्रा माना जाता है।

इस प्रकार मात्रा दो प्रकार के होते हैं-

  • ह्रस्व- अ, इ, उ, ऋ
  • दीर्घ- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ

छंद में वर्ण और मात्रा की गणना :

वर्ण की गणना-

  1. ह्रस्व स्वर वाले वर्ण (ह्रस्व वर्ण)- अ, इ, उ, ऋ, क, कि, कु, कृ
  2. दीर्घ स्वर वाले वर्ण (दीर्घ वर्ण)- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, का, की, कू, के, कै, को, कौ

मात्रा की गणना-

  • ह्रस्व स्वर- एकमात्रिक- अ, इ, उ, ऋ
  • दीर्घ वर्ण- द्विमात्रिक- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ

वर्णों में मात्राओं की गिनती में स्थूल भेद यही है कि वर्ण 'स्वर अक्षर' को और मात्रा 'सिर्फ़ स्वर' को कहते हैं।

लघु व गुरु वर्ण-

छंदशास्त्री ह्रस्व स्वर तथा ह्रस्व स्वर वाले व्यंजन वर्ण को लघु कहते हैं। लघु के लिए प्रयुक्त चिह्न- एक पाई रेखा।

इसी प्रकार, दीर्घ स्वर तथा दीर्घ स्वर वाले व्यंजन वर्ण को गुरु कहते हैं। गुरु के लिए प्रयुक्त चिह्न- एक वर्तुल रेखा- ऽ

लघु वर्ण के अंतर्गत शामिल किये जाते हैं-

  • अ, इ, उ, ऋ
  • क, कि, कु, कृ
  • अँ, हँ (चन्द्र बिन्दु वाले वर्ण) - अँसुवर, हँसी
  • त्य (संयुक्त व्यंजन वाले वर्ण)-   नित्य

गुरु वर्ण के अंतर्गत शामिल किये जाते हैं-

  • आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
  • का, की, कू, के, कै, को, कौ
  • इं, विं, तः, धः (अनुस्वार व विसर्ग वाले वर्ण)  -इंदु, बिंदु, अतः, अधः
  • अग्र का अ, वक्र का व (संयुक्ताक्षर का पूर्ववर्ती वर्ण)
  • राजन् का ज (हलन् वर्ण के पहले का वर्ण)
3- छंद में संख्या और क्रम 

वर्णों और मात्राओं की गणना को संख्या कहते हैं।

लघु-गुरु के स्थान निर्धारण को क्रम कहते हैं।

वर्णिक छंदों के सभी चरणों में संख्या (वर्णों की) और क्रम (लघु-गुरु का) दोनों समान होते हैं।

जबकि मात्रिक छंदों के सभी चरणों में संख्या (मात्राओं की) तो समान होती है लेकिन क्रम (लघु-गुरु का) समान नहीं होते हैं। 4.गण (केवल वर्णिक छंदों के मामले में लागू) गण का अर्थ है 'समूह'। यह समूह तीन वर्णों का होता है। गण में 3 ही वर्ण होते हैं, न अधिक न कम।

अतः गण की परिभाषा होगी 'लघु-गुरु के नियत क्रम से 3 वर्णों के समूह को गण कहा जाता है'।

गणों की संख्या 8 है-

  1. यगण, 
  2. मगण, 
  3. तगण, 
  4. रगण, 
  5. जगण, 
  6. भगण, 
  7. नगण, 
  8. सगण

गणों को याद रखने के लिए सूत्र-

यमाताराजभानसलगा

इसमें पहले आठ वर्ण गणों के सूचक हैं और अन्तिम दो वर्ण लघु (ल) व गुरु (ग) के।

सूत्र से गण प्राप्त करने का तरीका-

बोधक वर्ण से आरंभ कर आगे के दो वर्णों को ले लें। गण अपने-आप निकल आएगा। उदाहरण- 

यगण किसे कहते हैं

यमाता | ऽ ऽ अतः यगण का रूप हुआ-आदि लघु (| ऽ ऽ)
5- छंद में गति

छंद के पढ़ने के प्रवाह या लय को गति कहते हैं।

गति का महत्त्व वर्णिक छंदों की अपेक्षा मात्रिक छंदों में अधिक है। बात यह है कि वर्णिक छंदों में तो लघु-गुरु का स्थान निश्चित रहता है किन्तु मात्रिक छंदों में लघु-गुरु का स्थान निश्चित नहीं रहता, पूरे चरण की मात्राओं का निर्देश नहीं रहता है।

मात्राओं की संख्या ठीक रहने पर भी चरण की गति (प्रवाह) में बाधा पड़ सकती है।

  • जैसे- 'दिवस का अवसान था समीप' में गति नहीं है जबकि 'दिवस का अवसान समीप था' में गति है।

  • चौपाई, अरिल्ल व पद्धरि - इन तीनों छंदों के प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं पर गति भेद से ये छंद परस्पर भिन्न हो जाते हैं।
  • अतएव, मात्रिक छंदों के निर्दोष प्रयोग के लिए गति का परिज्ञान अत्यन्त आवश्यक है।
  • गति का परिज्ञान भाषा की प्रकृति, नाद के परिज्ञान एवं अभ्यास पर निर्भर करता है।
6- छंद में यति/ विराम

  • छंद में नियमित वर्ण या मात्रा पर साँस लेने के लिए रुकना पड़ता है, इसी रूकने के स्थान को यति या विराम कहते हैं।
  • छोटे छंदों में साधारणतः यति चरण के अन्त में होती है; पर बड़े छंदों में एक ही चरण में एक से अधिक यति या विराम होते हैं।
  • यति का निर्देश प्रायः छंद के लक्षण (परिभाषा) में ही कर दिया जाता है। जैसे मालिनी छंद में पहली यति 8 वर्णों के बाद तथा दूसरी यति 7 वर्णों के बाद पड़ती है।
7- छंद में तुक

छंद के चरणान्त की अक्षर-मैत्री (समान स्वर-व्यंजन की स्थापना) को तुक कहते हैं।

जिस छंद के अंत में तुक हो उसे तुकान्त छंद और जिसके अन्त में तुक न हो उसे अतुकान्त छंद कहते हैं। अतुकान्त छंद को अंग्रेज़ी में ब्लैंक वर्स कहते हैं।

तुक के भेद 

  1. तुकांत कविता
  2. अतुकांत कविता

1. तुकांत कविता : 

जब चरण के अंत में वर्णों की आवृति होती है उसे तुकांत कविता कहते हैं। पद्य प्राय: तुकांत होते हैं। जैसे :-

हमको बहुत ई भाती हिंदी।

हमको बहुत है प्यारी हिंदी।”

2. अतुकांत कविता :

जब चरण के अंत में वर्णों की आवृति नहीं होती उसे अतुकांत कविता कहते हैं। नई कविता अतुकांत होती है। जैसे -

“काव्य सर्जक हूँ

प्रेरक तत्वों के अभाव में

लेखनी अटक गई हैं

काव्य-सृजन हेतु

तलाश रहा हूँ उपादान।”

Chhand Kitne Prakar Ke Hote Hain - छंद कितने प्रकार के होते है 

  • वर्णिक छंद (या वृत) - जिस छंद के सभी चरणों में वर्णों की संख्या समान हो।
  • वर्णिक वृत छंद- इसमें वर्णों की गणना होती है
  • मात्रिक छंद (या जाति) - जिस छंद के सभी चरणों में मात्राओं की संख्या समान हो।
  • मुक्त छंद - जिस छंद में वर्णिक या मात्रिक प्रतिबंध न हो।

1- वर्णिक छंद

वर्णिक छंद के सभी चरणों में वर्णों की संख्या समान रहती है और लघु-गुरु का क्रम समान रहता है।

प्रमुख वर्णिक छंद :

प्रमाणिका (8 वर्ण); स्वागता, भुजंगी, शालिनी, इन्द्रवज्रा, दोधक (सभी 11 वर्ण); वंशस्थ, भुजंगप्रयाग, द्रुतविलम्बित, तोटक (सभी 12 वर्ण); वसंततिलका (14 वर्ण); मालिनी (15 वर्ण); पंचचामर, चंचला (सभी 16 वर्ण); मन्दाक्रान्ता, शिखरिणी (सभी 17 वर्ण), शार्दूल विक्रीडित (19 वर्ण), स्त्रग्धरा (21 वर्ण), सवैया (22 से 26 वर्ण), घनाक्षरी (31 वर्ण) रूपघनाक्षरी (32 वर्ण), देवघनाक्षरी (33 वर्ण), कवित्त / मनहरण (31-33 वर्ण)

वृतों की तरह इनमे गुरु और लघु का कर्म निश्चित नहीं होता है बस वर्ण संख्या निश्चित होती है। ये वर्णों की गणना पर आधारित होते हैं।जिनमे वर्णों की संख्या , क्रम , गणविधान , लघु-गुरु के आधार पर रचना होती है। जैसे-

दुर्मिल सवैया -

  • प्रिय पति वह मेरा , प्राण प्यारा कहाँ है।
  • दुःख-जलधि निमग्ना , का सहारा कहाँ है।
  • अब तक जिसको मैं , देख के जी सकी हूँ।
  • वह ह्रदय हमारा , नेत्र तारा कहाँ है।

2- वर्णिक वृत छंद 

इसमें वर्णों की गणना होती है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में आने वाले लघु -गुरु का क्रम सुनिश्चित होता है। इसे सम छंद भी कहते हैं।

  •  जैसे :- मत्तगयन्द सवैया।

3- मात्रिक छंद 

मात्रिक छंद के सभी चरणों में मात्राओं की संख्या तो समान रहती है लेकिन लघु-गुरु के क्रम पर ध्यान नहीं दिया जाता है।

प्रमुख मात्रिक छंद-

सम मात्रिक छंद : अहीर (11 मात्रा), तोमर (12 मात्रा), मानव (14 मात्रा); अरिल्ल, पद्धरि/ पद्धटिका, चौपाई (सभी 16 मात्रा); पीयूषवर्ष, सुमेरु (दोनों 19 मात्रा), राधिका (22 मात्रा), रोला, दिक्पाल, रूपमाला (सभी 24 मात्रा), गीतिका (26 मात्रा), सरसी (27 मात्रा), सार (28 मात्रा), हरिगीतिका (28 मात्रा), तांटक (30 मात्रा), वीर या आल्हा (31 मात्रा)।

अर्द्धसम मात्रिक छंद : बरवै (विषम चरण में - 12 मात्रा, सम चरण में - 7 मात्रा), दोहा (विषम - 13, सम - 11), सोरठा (दोहा का उल्टा), उल्लाला (विषम - 15, सम - 13)।

विषम मात्रिक छंद : कुण्डलिया (दोहा + रोला), छप्पय (रोला + उल्लाला)।

मात्रा की गणना के आधार पर की गयी पद की रचना को मात्रिक छंद कहते हैं। अथार्त जिन छंदों की रचना मात्राओं की गणना के आधार पर की जाती है उन्हें मात्रिक छंद कहते हैं। जिनमें मात्राओं की संख्या , लघु -गुरु , यति -गति के आधार पर पद रचना की जाती है उसे मात्रिक छंद कहते हैं। जैसे -

बंदऊं गुर्रू पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।

अमिअ मुरियम चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू।।


मात्रिक छंद के भेद :-

1. सममात्रिक छंद 2. अर्धमात्रिक छंद 3. विषममात्रिक छंद


1. सममात्रिक छंद :

जहाँ पर छंद में सभी चरण समान होते हैं उसे सममात्रिक छंद कहते हैं। जैसे 

  • मुझे नहीं ज्ञात कि मैं कहाँ हूँ
  • प्रभो! यहाँ हूँ अथवा वहाँ हूँ।

2. अर्धमात्रिक छंद :

जिसमें पहला और तीसरा चरण एक समान होता है तथा दूसरा और चौथा चरण उनसे अलग होते हैं लेकिन आपस में एक जैसे होते हैं उसे अर्धमात्रिक छंद कहते हैं।

3. विषममात्रिक छंद :

जहाँ चरणों में दो चरण अधिक समान न हों उसे विषम मात्रिक छंद कहते हैं। ऐसे छंद प्रचलन में कम होते हैं।

4- मुक्त छंद

जिस विषय छंद में वर्णित या मात्रिक प्रतिबंध न हो, न प्रत्येक चरण में वर्णों की संख्या और क्रम समान हो और मात्राओं की कोई निश्चित व्यवस्था हो तथा जिसमें नाद और ताल के आधार पर पंक्तियों में लय लाकर उन्हें गतिशील करने का आग्रह हो, वह मुक्त छंद है।

  • उदाहरण : निराला की कविता 'जूही की कली' इत्यादि।

मुक्त छंद को आधुनिक युग की देन माना जाता है। जिन छंदों में वर्णों और मात्राओं का बंधन नहीं होता उन्हें मुक्तक छंद कहते हैं अथार्त हिंदी में स्वतंत्र रूप से आजकल लिखे जाने वाले छंद मुक्त छंद होते हैं। चरणों की अनियमित , असमान , स्वछन्द गति और भाव के अनुकूल यति विधान ही मुक्त छंद की विशेषता है। इसे रबर या केंचुआ छंद भी कहते हैं। इनमे न वर्णों की और न ही मात्राओं की गिनती होती है। जैसे :-

  • वह आता
  • दो टूक कलेजे के करता पछताता
  • पथ पर आता।
  • पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक ,
  • चल रहा लकुटिया टेक ,
  • मुट्ठी भर दाने को भूख मिटाने को
  • मुँह फटी पुरानी झोली का फैलता
  • दो टूक कलेजे के कर्ता पछताता पथ पर आता।
  • प्रमुख मात्रिक छंद
  •  दोहा छंद
  •  सोरठा छंद
  • रोला छंद
  • गीतिका छंद
  • हरिगीतिका छंद
  • उल्लाला छंद
  •  चौपाई छंद
  •  बरवै (विषम) छंद
  •  छप्पय छंद
  • कुंडलियाँ छंद
  •  दिगपाल छंद
  • आल्हा या वीर छंद
  •  सार छंद
  •  तांटक छंद
  •  रूपमाला छंद
  •  त्रिभंगी छंद

1. दोहा छंद -

यह अर्धसममात्रिक छंद होता है। ये सोरठा छंद के विपरीत होता है। इसमें पहले और तीसरे चरण में 13-13 तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसमें चरण के अंत में लघु (1) होना जरूरी होता है। जैसे :-

(अ)- दोहा छंद के उदाहरण -

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“कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर।

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समय पाय तरुवर फरै, केतक सींचो नीर ।।”

(ब) दोहा छंद के उदाहरण -

तेरो मुरली मन हरो, घर अँगना न सुहाय॥

श्रीगुरू चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि !

बरनउं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि !!

रात-दिवस, पूनम-अमा, सुख-दुःख, छाया-धूप।

यह जीवन बहुरूपिया, बदले कितने रूप॥

2. सोरठा छंद :- 

यह अर्धसममात्रिक छंद होता है। ये दोहा छंद के विपरीत होता है। इसमें पहले और तीसरे चरण में 11-11 तथा दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। यह दोहा का उल्टा होता है। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना जरूरी होता है।तुक प्रथम और तृतीय चरणों में होता है। जैसे :-

(अ) सोरठा छंद के उदाहरण - Sortha Chhand Ka Udaharan 1

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कहै जु पावै कौन , विद्या धन उद्दम बिना।

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ज्यों पंखे की पौन, बिना डुलाए ना मिलें।

(ब) सोरठा छंद के उदाहरण - Sortha Chhand Ka Udaharan 2

जो सुमिरत सिधि होय, गननायक करिबर बदन।

करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥

3. रोला छंद -

यह एक मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 11 और 13 के क्रम से 24 मात्राएँ होती हैं। इसे अंत में दो गुरु और दो लघु वर्ण होते हैं। जैसे :-

(अ) रोला छंद का उदाहरण - Rola Chhand Ka Udaharan 1

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नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है।

सूर्य चन्द्र युग-मुकुट मेखला रत्नाकर है।

नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारे मंडन है।

बंदी जन खग-वृन्द, शेष फन सिंहासन है।

(ब) रोला छंद का उदाहरण - Rola Chhand Ka Udaharan 2

यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।

पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥

4. गीतिका छंद -

 यह मात्रिक छंद होता है। इसके चार चरण होते हैं। हर चरण में 14 और 12 के करण से 26 मात्राएँ होती हैं। अंत में लघु और गुरु होता है। जैसे :-

गीतिका छंद का उदाहरण -

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हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये।

शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये।

लीजिए हमको शरण में, हम सदाचारी बने।

ब्रह्मचारी, धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें।

5. हरिगीतिका छंद-

यह मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके हर चरण में 16 और 12 के क्रम से 28 मात्राएँ होती हैं। इसके अंत में लघु गुरु का प्रयोग अधिक प्रसिद्ध है। जैसे :-

हरिगीतिका छंद का उदाहरण-

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मेरे इस जीवन की है तू, सरस साधना कविता।

मेरे तरु की तू कुसुमित , प्रिय कल्पना लतिका।

मधुमय मेरे जीवन की प्रिय,है तू कल कामिनी।

मेरे कुंज कुटीर द्वार की, कोमल चरण-गामिनी।

6. उल्लाला छंद -

यह मात्रिक छंद होता है। इसके हर चरण में 15 और 13 के क्रम से 28 मात्राएँ होती है। जैसे :-

उल्लाला छंद का उदाहरण - 

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करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेश की।

हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण-मूर्ति सर्वेश की।

7. चौपाई छंद -

यह एक मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके हर चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। चरण के अंत में गुरु या लघु नहीं होता है लेकिन दो गुरु और दो लघु हो सकते हैं। अंत में गुरु वर्ण होने से छंद में रोचकता आती है। जैसे :-

चौपाई छंद का उदाहरण - 1 

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“इहि विधि राम सबहिं समुझावा

गुरु पद पदुम हरषि सिर नावा।”

चौपाई छंद का उदाहरण - 2 

बंदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुराग॥

अमिय मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥

8. विषम छंद -

इसमें पहले और तीसरे चरण में 12 और दूसरे और चौथे चरण में 7 मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अंत में जगण और तगण के आने से मिठास बढती है। यति को प्रत्येक चरण के अंत में रखा जाता है। जैसे -

बिषम छंद के उदाहरण -

चम्पक हरवा अंग मिलि अधिक सुहाय।

जानि परै सिय हियरे, जब कुम्हिलाय।

9. छप्पय छंद -

 इस छंद में 6 चरण होते हैं। पहले चार चरण रोला छंद के होते हैं और अंत के दो चरण उल्लाला छंद के होते हैं। प्रथम चार चरणों में 24 मात्राएँ और बाद के दो चरणों में 26-26 या 28-28 मात्राएँ होती हैं। जैसे -

छप्पय छंद का उदाहरण -

नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुन्दर है।

सूर्य-चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है।

नदिया प्रेम-प्रवाह, फूल -तो मंडन है।

बंदी जन खग-वृन्द, शेषफन सिंहासन है।

करते अभिषेक पयोद है, बलिहारी इस वेश की।

हे मातृभूमि! तू सत्य ही,सगुण मूर्ति सर्वेश की।।

10. कुंडलियाँ छंद :

कुंडलियाँ विषम मात्रिक छंद होता है। इसमें 6 चरण होते हैं। शुरू के 2 चरण दोहा और बाद के 4 चरण उल्लाला छंद के होते हैं। इस तरह हर चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। जैसे –

(अ) कुंडलियाँ छंद के उदाहरण

घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध।

बाहर का बक हंस है, हंस घरेलू गिद्ध

हंस घरेलू गिद्ध , उसे पूछे ना कोई।

जो बाहर का होई, समादर ब्याता सोई।

चित्तवृति यह दूर, कभी न किसी की होगी।

बाहर ही धक्के खायेगा , घर का जोगी।।

(ब) कुंडलियाँ छंद के उदाहरण

कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।

खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥

उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।

बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥

कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी।

सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥

(स) कुंडलियाँ छंद के उदाहरण

रत्नाकर सबके लिए, होता एक समान।

बुद्धिमान मोती चुने, सीप चुने नादान॥

सीप चुने नादान,अज्ञ मूंगे पर मरता।

जिसकी जैसी चाह,इकट्ठा वैसा करता।

‘ठकुरेला’ कविराय, सभी खुश इच्छित पाकर।

हैं मनुष्य के भेद, एक सा है रत्नाकर॥

11. दिगपाल छंद -

 इसके हर चरण में 12-12 के विराम से 24 मात्राएँ होती हैं। जैसे -

दिगपाल छंद के उदाहरण -

हिमाद्रि तुंग-श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती।

स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती।

अमर्त्य वीर पुत्र तुम, दृढ प्रतिज्ञ सो चलो।

प्रशस्त पुण्य-पंथ है, बढ़े चलो-बढ़े चलो।।

12. आल्हा या वीर छंद 

  •  इसमें 16 -15 की यति से 31 मात्राएँ होती हैं।

13. सार छंद 

  • इसे ललित पद भी कहते हैं। सार छंद में 28 मात्राएँ होती हैं। इसमें 16-12 पर यति होती है और बाद में दो गुरु होते हैं।

14. ताटंक छंद -

 इसके हर चरण में 16,14 की यति से 30 मात्राएँ होती हैं।

15. रूपमाला छंद -

  •  इसके हर चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। 14 और 10 मैट्रन पर विराम होता है। अंत में गुरु लघु होना चाहिए।

16. त्रिभंगी छंद 

  • यह छंद 32 मात्राओं का होता है। 10,8,8,6 पर यति होती है और अंत में गुरु होता है।

प्रमुख वर्णिक छंद

  • सवैया छंद
  •  कवित्त छंद
  • द्रुत विलम्बित छंद
  • मालिनी छंद
  • मंद्रक्रांता छंद
  • इंद्र्व्रजा छंद
  •  उपेंद्रवज्रा छंद
  • अरिल्ल छंद
  • लावनी छंद
  • राधिका छंद
  • त्रोटक छंद
  •  भुजंग छंद
  • वियोगिनी छंद
  • वंशस्थ छंद
  • शिखरिणी छंद
  • शार्दुल विक्रीडित छंद
  • मत्तगयंग छंद

1. सवैया छंद -

 इसके हर चरण में 22 से 26 वर्ण होते हैं। इसमें एक से अधिक छंद होते हैं। ये अनेक प्रकार के होते हैं और इनके नाम भी अलग -अलग प्रकार के होते हैं। सवैया में एक ही वर्णिक गण को बार-बार आना चाहिए। इनका निर्वाह नहीं होता है। जैसे -

सवैया छंद के उदाहरण -

  • लोरी सरासन संकट कौ,
  • सुभ सीय स्वयंवर मोहि बरौ।
  • नेक ताते बढयो अभिमानंमहा,
  • मन फेरियो नेक न स्न्ककरी।
  • सो अपराध परयो हमसों,
  • अब क्यों सुधरें तुम हु धौ कहौ।
  • बाहुन देहि कुठारहि केशव,
  • आपने धाम कौ पंथ गहौ।।

2. मन हर , मनहरण , घनाक्षरी , कवित्त छंद -

यह वर्णिक सम छंद होता है। इसके हर चरण में 31से 33 वर्ण होते हैं और अंत में तीन लघु होते हैं। 16, 17 वें वर्ण पर विराम होता है। जैसे :-

कवित्त छंद के उदाहरण 

  • मेरे मन भावन के भावन के ऊधव के आवन की
  • सुधि ब्रज गाँवन में पावन जबै लगीं।
  • कहै रत्नाकर सु ग्वालिन की झौर-झौर
  • दौरि-दौरि नन्द पौरि,आवन सबै लगीं।
  • उझकि-उझकि पद-कंजनी के पंजनी पै,
  • पेखि-पेखि पाती,छाती छोहन सबै लगीं।
  • हमको लिख्यौ है कहा,हमको लिख्यौ है कहा,
  • हमको लिख्यौ है कहा,पूछ्न सबै लगी।।

3. द्रुत विलम्बित छंद -

हर चरण में 12 वर्ण , एक नगण , दो भगण तथा एक सगण होते हैं। जैसे -

  • द्रुत विलम्बित छंद के उदाहरण
  • दिवस का अवसान समीप था,
  • गगन था कुछ लोहित हो चला।
  • तरु शिखा पर थी अब राजती,
  • कमलिनी कुल-वल्लभ की प्रभा।।

4. मालिनी छंद -

इस वर्णिक सम वृत छंद में 15 वर्ण होते हैं दो तगण , एक मगण , दो यगण होते हैं। आठ , सात वर्ण एवं विराम होता है।जैसे -

मालिनी छंद के उदाहरण 

  • प्रभुदित मथुरा के मानवों को बना के,
  • सकुशल रह के औ विध्न बाधा बचाके।
  • निज प्रिय सूत दोनों , साथ ले के सुखी हो,
  • जिस दिन पलटेंगे, गेह स्वामी हमारे।।

5. मंदाक्रांता छंद-

इसके हर चरण में 17 वर्ण होते हैं। एक भगण , एक नगण , दो तगण , और दो गुरु होते हैं। 5, 6 तथा 7 वें वर्ण पर विराम होता है। जैसे -

मद्रकान्ता छंद के उदाहरण -

  • कोई क्लांता पथिक ललना चेतना शून्य होक़े,
  • तेरे जैसे पवन में , सर्वथा शान्ति पावे।
  • तो तू हो के सदय मन, जा उसे शान्ति देना,
  • ले के गोदी सलिल उसका, प्रेम से तू सुखाना।।

6. इन्द्रव्रजा छंद -

इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण , दो जगण और बाद में 2 गुरु होते हैं। जैसे -

इन्द्रव्रजा छंद के उदाहरण -

  • माता यशोदा हरि को जगावै।
  • प्यारे उठो मोहन नैन खोलो।
  • द्वारे खड़े गोप बुला रहे हैं।
  • गोविन्द, दामोदर माधवेति।।

7. उपेन्द्रव्रजा छंद -

इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण , 1 नगण , 1 तगण , 1 जगण और बाद में 2 गुरु होता हैं। जैसे -

उपेन्द्रव्रजा छंद के उदाहरण -

  • पखारते हैं पद पद्म कोई,
  • चढ़ा रहे हैं फल -पुष्प कोई।
  • करा रहे हैं पय-पान कोई
  • उतारते श्रीधर आरती हैं।।

8. अरिल्ल छंद -

हर चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। इसके अंत में लघु या यगण होना चाहिए।

अरिल्ल छंद के उदाहरण -

  • मन में विचार इस विधि आया।
  • कैसी है यह प्रभुवर माया।
  • क्यों आगे खड़ी है विषम बाधा।
  • मैं जपता रहा, कृष्ण-राधा।।

9. लावनी छंद -

 इसके हर चरण में 22 मात्राएँ और चरण के अंत में गुरु होते हैं। जैसे -

लावनी छंद के उदाहरण -

  • धरती के उर पर जली अनेक होली।
  • पर रंगों से भी जग ने फिर नहलाया।
  • मेरे अंतर की रही धधकती ज्वाला।
  • मेरे आँसू ने ही मुझको बहलाया।।

10. राधिका छंद -

 इसके हर चरण में 22 मात्राएँ होती हैं। 13 और 9 पर विराम होता है। जैसे -

राधिका छंद के उदाहरण -

  • बैठी है वसन मलीन पहिन एक बाला।
  • बुरहन पत्रों के बीच कमल की माला।
  • उस मलिन वसन म, अंग-प्रभा दमकीली।
  • ज्यों धूसर नभ में चंद्रप्रभा चमकीली।।

11. त्रोटक छंद-

 इसके हर चरण में 12 मात्रा और 4 सगण होते हैं। जैसे  -

त्रोटक छंद के उदाहरण -

  • शशि से सखियाँ विनती करती,
  • टुक मंगल हो विनती करतीं।
  • हरि के पद-पंकज देखन दै
  • पदि मोटक माहिं निहारन दै।।

12. भुजंगी छंद- 

 हर चरण में 11 वर्ण , तीन सगण , एक लघु और एक गुरु होता है। जैसे -

  • भुजंगी छंद के उदाहरण -
  • शशि से सखियाँ विनती करती,
  • टुक मंगल हो विनती करतीं।
  • हरि के पद-पंकज देखन दै
  • पदि मोटक माहिं निहारन दै।।

13. वियोगिनी छंद :-

इसके सम चरण में 11-11 और विषम चरण में 10 वर्ण होते हैं। विषम चरणों में दो सगण , एक जगण , एक सगण और एक लघु व एक गुरु होते हैं। जैसे -

वियोगिनी छंद के उदाहरण -

  • विधि ना कृपया प्रबोधिता,
  • सहसा मानिनि सुख से सदा
  • करती रहती सदैव ही
  • करुण की मद-मय साधना।।

14. वंशस्थ छंद-

 इसके हर चरण में 12 वर्ण , एक नगण , एक तगण , एक जगण और एक रगण होते हैं। जैसे -

वंशस्थ छंद के उदाहरण -

  • गिरिन्द्र में व्याप्त विलोकनीय थी,
  • वनस्थली मध्य प्रशंसनीय थी
  • अपूर्व शोभा अवलोकनीय थी
  • असेत जम्बालिनी कूल जम्बुकीय।।

15. शिखरिणी छंद -

इसमें 17 वर्ण होते हैं। इसके हर चरण में यगण , मगण , नगण , सगण , भगण , लघु और गुरु होता है। 

16. शार्दुल विक्रीडित छंद :- इसमें 19 वर्ण होते हैं। 12 , 7 वर्णों पर विराम होता है। हर चरण में मगण , सगण , जगण , सगण , तगण , और बाद में एक गुरु होता है।

17. मत्तगयंग छंद -

इसमें 23 वर्ण होते हैं। हर चरण में सात सगण और दो गुरु होते हैं।

काव्य में छंद का महत्व

छंद से ह्रदय का संबंध बोध होता है। छंद से मानवीय भावनाएँ झंकृत होती हैं। छंदों में स्थायित्व होता है। छंद के सरस होने के कारण मन को भाते हैं। जैसे :-

भभूत लगावत शंकर को, अहिलोचन मध्य परौ झरि कै।

अहि की फुँफकार लगी शशि को, तब अंमृत बूंद गिरौ चिरि कै।

तेहि ठौर रहे मृगराज तुचाधर, गर्जत भे वे चले उठि कै।

सुरभी-सुत वाहन भाग चले, तब गौरि हँसीं मुख आँचल दै॥

उम्मीद है आपको छंद किसे कहते है (Chhand Kise Kahate Hai) के बारे में पूरी जानकारी मिल गई गयी होगी। आज के इस लेख में आपने छंद की परिभाषा एवं उसके प्रकारो को उदाहरणों सहित समझा। इस लेख को शेयर कीजिये और अन्य लेख पढ़िए।  

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